आत्मा को छूने वाली पंगतिया ........
कटुता बोकर काटोगे क्या,
इस पर जरा बिचार करो।
धरा किसी के साथ नहिं,
क्या तुम लेकर जाओगे।
(इस पर जरा बिचार करो।)
सेतु बँधइया राम चंद्र हों,
या फिर हो दशकंध।
धरा किसी के साथ गई नहीं,
चाहे कितना करो प्रबंध।
हवा ये कैसी चला रहे हो,
रूख बबूल के लगा रहे हो।
काँटे किसे चुभेगें प्यारे,
इस पर जरा बिचार करो।
धरा किसी के साथ गई नहीं,
क्या तुम लकर जाओगे।
(इस पर जरा बिचार करो।)
वसुधैव कुटुम्बकम,
प्यारो धेय हमारा है।
मजहब और जाति का प्यारे,
क्यों बाजार सजाया है।
अधिक समय तक नहीं बिकेगा,
घटिया माल तुम्हारा है।
जब बदबू मारेगा प्यारे,
कैसे नाक बचाओगे।
(इस पर जरा बिचार करो)
छिद्रयुक्त नौका से प्यारे,
सागर पार नहीं होता।
साफ आइना करने से,
चहरा साफ नहीं होता।
चहरा चमकदार कैसे हो,
इस पर जरा बिचार करो।
बगुला भगत अगर हो राजा,
मीन बिचारीं क्या करें।
हरदम धोखा खातीं हैं,
कैसे जय जयकार करें।
क्या इतिहास कहेगा प्यारे,
इस पर जरा बिचार करो।
धरा किसी के साथ गई नहिं,
क्या तुम लेकर जाओगे।
(इस पर जरा बिचार करो।)
[2]
अरे चातक! जरा जागो,
इतनी समझ पाओ।
गिड़गिडा़ कर ब्यर्थ में,
मत सोर मचाओ।
गगन में बादल बहुत से है , सभी के सामने मत हाथफैलाओ
कितने गरजते हैं,
आशा जगाते हैं।
बिजली गिराते हैं,
हमको डराते हैं।
धरा को तृप्त जो कर दें,
जरा उनको समझ पाओ।
अरे चातक! जरा जागो,
इतनी समझ पाओ।
गरज सुनकर बादलों की,
घडे़ को तोड़ मत देना।
संजोया जल पुराना जो,
उसे बरबाद मत करना।
गरजने और बरषने में,
जरा अंतर समझ पाओ।
अरे चातक! जरा जागो,
इतनी समझ पाओ।
गिड़गिडा़ कर ब्यर्थ में,
मत सोर मचाओ।
ग्याप्रसाद राजपूत सेमई
Comments
Post a Comment