A new poem in Hindi by gyaprashad rajpoot semai
Poem
जासे भारत बड़वे आँगे,
वो काहे नहिं कर रय।
जाति -पाँति मजहव की बातें,
काहे विरथां कर रय।
मन्दिर मे कर रहे न्युक्तियाँ,
खूब पुजारी बन रय।
स्कूलन में शिक्षक नइयाँ,
जां पै बच्चा पढ़ रय।
सुबह-शाम मन्दिर में ठाड़े,
उते पांव नहिं धर रय।
अस्पताल में देखो जाकैं,
कैसें जिन्दा मर रय।
मन्दिर-मस्जिद सुन्दर कितने,
जासें हम का पारय।
डिगरी धारी मोड़ा फिर रय,
सोचो कहा गवारय।
यार डालियाँ सींच रहे हम,
जड़े नहीं तक पा रय।
स्कूलन में घंटी नइया़ँ,
घंटा खूब बजा रय।
नव वर्ष पर कविता
नयी साल की बहुत बधाई,
भैया तुमखों दैरय।
बब्बा खों जब दयी बधाई,
सुनलो वे का कैरय।
नयी साल जौ अपनी नैयाँ,
परदेशिन पै मर रय।
नया साल संवतसर अपनो,
काहे ओछे वन रय।
जो काय नयी नवेली लग रइ,
का नव नव तुम्हें दिखारव।
वेई रूख हैं वेई हैं पत्ता,
नव नहिं कछू दिखारव।
कैसें देश हमारो भैया,
जौ नव वर्ष मनारव।
अपने हांतन अपनो गौरव ,
काहे यार गंवारव।
नयी साल में बहत वसंती,
तुमखों किते दिखारइ।
किते आम की डार लदी,
बौरन सें तुम्हें दिखारइ।
किते पेड़ पै नय पत्ता हैं,
किते कली मुस्कारइ।
नयी साल में तुमहिं बताओ,
किते ध्वजा फहराइ।
कवि - ग्याप्रसाद राजपूत सेमई
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