A new poem in Hindi by gyaprashad rajpoot semai
Poem जासे भारत बड़वे आँगे, वो काहे नहिं कर रय। जाति -पाँति मजहव की बातें, काहे विरथां कर रय। मन्दिर मे कर रहे न्युक्तियाँ, खूब पुजारी बन रय। स्कूलन में शिक्षक नइयाँ, जां पै बच्चा पढ़ रय। सुबह-शाम मन्दिर में ठाड़े, उते पांव नहिं धर रय। अस्पताल में देखो जाकैं, कैसें जिन्दा मर रय। मन्दिर-मस्जिद सुन्दर कितने, जासें हम का पारय। डिगरी धारी मोड़ा फिर रय, सोचो कहा गवारय । यार डालियाँ सींच रहे हम, जड़े नहीं तक पा रय। स्कूलन में घंटी नइया़ँ, ...