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आत्मा को छूने वाली पंगतिया ........

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 कटुता बोकर काटोगे क्या,            इस पर जरा बिचार करो। धरा किसी के साथ नहिं,            क्या तुम लेकर जाओगे।         (इस पर जरा बिचार करो।)  सेतु बँधइया राम चंद्र हों,                  या फिर हो दशकंध।  धरा किसी के साथ गई नहीं,              चाहे कितना करो प्रबंध। हवा ये कैसी चला रहे हो,          रूख बबूल के लगा रहे हो। काँटे किसे चुभेगें प्यारे,           इस पर जरा बिचार  करो।  धरा किसी के साथ गई नहीं,             क्या तुम लकर जाओगे।        (इस पर जरा बिचार करो।)  वसुधैव कुटुम्बकम,              प्यारो धेय हमारा है।  मजहब और जाति का प्यारे,            क्यों बाजार सजाया है।  अधिक समय तक नहीं बिकेगा,    ...